28.4.12

"गहराई की मजबूरी"


अबे ओ, बाहर निकल, कहाँ घुस रहा है वहाँ?
तू घुस जाएगा वहाँ तो मैं रहूँगा कहाँ?
तू तो साले पढ़-लिख कर घुस गया है नीचे,
चूहा है की सांप है बढ़ता है अँखियाँ मीचे।

ज़रा हम पर भी एहसान कर ओ मेरे आका,
थोडा कम पढ़-लिख, हमको मौका दे नहीं तो तेरी माका!
हम नयी पीढ़ी के लेखकों का सेक्स पर शोध है पुख्ता,
एक दफा जो हाथ शुरू हो नहीं है फिर वो रुकता।

वैसे डरूं में क्यूँ तुझसे पढ़ते हैं सब मुझको,
पर पढ़ना चाहिए मुझे जिन्हें वे सब पढ़ते हैं तुझको।
अब नहीं चेतेगा समाज तुझसे, दम नहीं है तुझमे, 
जो चाहूँगा मैं बेचूंगा युवा खून है मुझमे।

माने मेरी तो सुनले बन्दे मत घुसा कर इतना, 
निकल नहीं पाएगा तू फिर रोलेगा जितना।
चार दिन की लाईफ बची है अब करले तू मस्ती, 
सेक्स बेचकर नाम होगा मेरी होगी हस्ती।

तेरे जैसा खूब गया था मैं भी कभी भूतल में,
देखा वहाँ कोई नहीं है फिर आया मैं तल पे।
भूतल में परिवार का जब पोषण नहीं है होता, 
मिलना ही पड़ता सागर में नदी हो चाहे सोता।

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